गीत (मात्रा-भार-16-11-सरसी छंद )
गीत
*गीत*(मात्रा-भार-16/11-सरसी छंद)
चलो,सभी खाएँ मिल कसमें,करें न कोई भूल,
बना क्रूर अंगूरी पानी,आज नशा का मूल।।
बच्चे-भाई-बंधु-पड़ोसी,अपना घर-परिवार,
रहें पिता-माता अति चिंतित,कैसे बेड़ा पार।
पत्नी-बच्चे भूखों मरते,सहें अतुल हिय-शूल।।
बना क्रूर अंगूरी.....
बिके राज,बहु बिकीं रियासत,बिके महल-घर-द्वार,
गजदल-पैदल-अश्वारोही,बिके सभी दरबार ।
निगल गई सब छोटी बोतल,अब सब फाँके धूल।।
बना क्रूर अंगूरी........
करे नशा चित-मन को घायल,पशुवत हो व्यवहार,
पथ्य-अपथ्य-भाव हो ग़ायब, रहे न शुद्ध विचार।
करे बुद्धि भी उल्टा-पुल्टा,काँटे लगते फूल।।
बना क्रूर अंगूरी.........
श्रमिक-वर्ग बन कर अति व्यसनी,जीवन कर बरबाद,
रहता अस्त-व्यस्त वह प्रति-दिन,घर उजाड़ आबाद।
भले न पाए भोजन-पानी,पीकर जाता झूल।।
बना क्रूर अंगूरी..........
कभी निरामिष-आमिष-गुण में,नहीं करे वह भेद,
अन अनुशासित जीवन उसका,ज्ञापित करे न खेद।
त्वरित समाए काल-गाल में, ले निज काया थूल।।
बना क्रूर अंगूरी...........
अधिकारी जब सेवन करते,रुचिर सुता अंगूर,
कर देती अंगूर की बेटी,उनको अति मग़रूर।
बड़ी-बड़ी तब सरकारों की,हिल जाती है चूल।।
बना क्रूर अंगूरी पानी,आज नशा का मूल,
चलो,सभी मिल खाएँ कसमें,करें न कोई भूल।।
©डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
Renu
18-Jan-2023 10:31 AM
👍👍🌺
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